नई दिल्ली। आर्थिक संकट से जूझ रहे पड़ोसी देश श्रीलंका में विरोध के बाद राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने मंगलवार को आपातकाल हटाने की घोषणा कर दी। श्रीलंकाई सरकार ने देश में बिगड़ते हालात को देखते हुए 1 अप्रैल को इमरजेंसी लागू की थी लेकिन विपक्ष और आम लोगों के भारी विरोध के बाद सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा और सरकार ने इमरजेंसी लगाने का फैसला वापस ले लिया है। इस बीच अल्पमत में आई श्रीलंका की सरकार के खिलाफ विपक्ष के साथ पूर्व सहयोगी दलों ने भी मोर्चा खोलते हुए इस्तीफे की मांग की है। उनके सभी 26 मंत्रियों के इस्तीफ़े के बाद अब सरकार से विपक्ष के साथ-साथ उनके पूर्व सहयोगी दलों ने भी उनसे इस्तीफे की मांग की है।
श्रीलंका इस समय अब तक के सबसे बड़े आर्थिक संकट से जूझ रहा है। देश में ईंधन से लेकर खाने-पीने के सामानों की भारी किल्लत है। देश रिकॉर्ड मुद्रास्फीति और बिजली की कटौती का सामना कर रहा है। आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका में चीन के खिलाफ गुस्सा लगातार बढ़ रहा है। श्रीलंकाई मीडिया रिपोर्ट्स में बताया जा रहा है कि सरकार के पास पैसा नहीं है क्योंकि उसने चीन को सब कुछ बेच दिया है। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि चीन छोटे देशों को उधार देकर कर्ज के चंगुल में फंसा रहा है और अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर रहा है।
राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के नेतृत्व वाली सरकार गंभीर राजनीतिक उथल-पुथल से जूझ रही है। मंगलवार को ही श्रीलंका के नए वित्त मंत्री अली साबरी ने पद संभालने के 24 घंटे के अंदर ही इस्तीफा दे दिया। राष्ट्रपति राजपक्षे ने अपने भाई बासिल राजपक्षे को बर्खास्त करने के बाद साबरी को नियुक्त किया था। श्रीलंका में खराब होती स्थिति का आलम इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री की पूरी कैबिनेट ने अपना इस्तीफा दे दिया है। यहां तक की पीएम के बेटे ने भी अपने पद को छोड़ने को फैसला लिया है। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो अब श्रीलंका में एक सर्वदलीय सरकार बनाई जा सकती है जहां पर विपक्ष के नेताओं की भी सक्रिय भागीदारी रहेगी।