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Ajab-Gazab News: देश के इस हिस्से में मौजूद है एक ऐसा रहस्यमयी मंदिर, जहां आज भी धड़कता है भगवान श्रीकृष्ण का दिल

Ajab-Gazab News: भगवान कृष्ण के शरीर त्यागने के बाद भी उनका हृदय अभी भी धड़क रहा है। इसे जानकर आपको हैरानी हो रही होगी लेकिन पुराणों में दी गई जानकारी और कुछ सत्य घटनाओं से रूबरू होने के बाद आप इस पर यकीन करने लगेंगे।

नई दिल्ली। भारत में हजारों की संख्या में मंदिर हैं, जिनकी अलग मान्यताएं और महत्व हैं। इन मंदिरों की अलग-अलग आस्थाएं हैं। लेकिन देश में कई ऐसे रहस्यमयी मंदिर भी हैं, जिनका रहस्य वैज्ञानिक भी नहीं सुलझा पाए हैं। ओडिसा में एक ऐसा ही रहस्यमयी मंदिर है, जहां आज भी भगवान श्रीकृष्ण का दिल धड़कता है। कहा जाता है कि भगवान कृष्ण के शरीर त्यागने के बाद भी उनका हृदय अभी भी धड़क रहा है। इसे जानकर आपको हैरानी हो रही होगी, लेकिन पुराणों में दी गई जानकारी और कुछ सत्य घटनाओं से रूबरू होने के बाद आप इस पर यकीन करने लगेंगे। द्वापर युग में मानव रूप में श्रीकृष्ण के जन्म लेने के बाद सृष्टि के नियम के अनुसार, उनके रूप की मृत्यु निश्चित थी और इस नियम के चलते श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध के ठीक 36 साल बाद अपनी देह का त्याग कर दिया था। पांडवों द्वारा जब उनका अंतिम संस्कार किया गया तो श्रीकृष्ण का पूरा शरीर तो अग्नि में समा गया, लेकिन उनका हृदय धड़कता रहा था। इसके बाद आकाशवाणी हुई कि ये ब्रह्म का हृदय है आप इसे समुद्र में प्रवाहित कर दें। इसके बाद पांडवों ने वैसा ही किया।

इसके अलावा, ओडिशा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर में कृष्ण के बड़े भाई बलदाऊ और बहन सुभद्रा के साथ विराजमान भगवान श्रीकृष्ण से कई रहस्य सुनने को मिलते हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर के सामने आकर हवा भी अपना रुख बदल लेती है। ताकि हिलोरे लेते समुद्र की लहरों की आवाज मंदिर के भीतर जाकर भगवान को परेशान न कर सके। प्रवेश द्वार से मंदिर के अंदर एक कदम अंदर रखते ही समुद्र की आवाज सुनाई देना बंद हो जाती है। इतना ही नहीं मंदिर का ध्वज भी हमेशा हवा से उलटी दिशा में लहराता हुआ दिखाई देता है। भगवान श्रीकृष्ण का धड़कता हुआ हृदय आज भी श्री जगन्नाथ मंदिर की मूर्ति में मौजूद है। भगवान श्रीकृष्ण के इस हृदय अंश को ब्रह्म पदार्थ कहा जाता है। श्री जगन्नाथ की मूर्ति का निर्माण नीम की लकड़ी से किया गया है, जिसे हर 12 साल में बदल दिया जाता है।

भगवान जगन्नाथ की मूर्ति को बदलते समय इस ब्रह्म पदार्थ को पुरानी मूर्ति से निकालकर नई मूर्ति में रख दिया जाता है। जब ये रस्म निभाई जाती है, तो उस समय पूरे शहर की बिजली काट दी जाती है। इसके बाद मूर्ति बदलने वाले मंदिर के पुजारी भगवान के कलेवर को बदलते हैं। इस दौरान पुजारी की आंखों पर पट्टी बांध दी जाती है और हाथों में दस्ताने पहना दिए जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि गलती से भी अगर किसी ने ब्रह्म हृदय को देख लिया तो उसकी तत्काल मृत्यु हो जाएगी। मूर्ति बदलने वाले पुजारी का भी कहना है कि इस प्रक्रिया के दौरान ऐसा एहसास होता, जैसे कलेवर के अंदर कोई खरगोश फुदक रहा हो।