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Narak Chaturdashi: नरक चतुर्दशी से जुड़ी वो पौराणिक कथाएं, जिन्हें हर किसी के लिए जानना है जरूरी

Narak Chaturdashi: नरक चतुर्दशी फेस्टिवल धनतेरस के एक दिन बाद और दिवाली से एक दिन पहले मनाया जाता है। इसे छोटी दिवाली कहकर भी संबोधित करते हैं।

नई दिल्ली। नरक चतुर्दशी का त्योहार बहुत खास होता है। कहा जाता है कि इस दिन यम के प्रकोप से मुक्ति मिलती है। ये फेस्टिवल धनतेरस के एक दिन बाद और दिवाली से एक दिन पहले मनाया जाता है। इसे छोटी दिवाली कहकर भी संबोधित करते हैं। हर त्योहार के पीछे कई पौराणिक कथाएं और महत्व छिपे होते हैं। आज हम नरक चतुर्दशी  की पौराणिक कथाओं के बारे में जानेंगे।

पहली कथा

एक राजा थे जिनका नाम था रंतिदेव। रंतिदेव बहुत ही दयालु और शांत स्वभाव के राजा थे जो अपनी प्रजा का बहुत ध्यान रखते थे। वो कभी किसी का अहित करने के बारे में सोचते तक नहीं थे और हमेशा सच्चाई और दान-पुण्य के रास्ते पर चलते थे। राजा के अंतिम दिनों में उन्हें यमदूत लेने के लिए आए। यमदूत को देख राजा ने पूछा कि मैंने तो कोई पाप नहीं किया है तो आप मुझे लेने क्यों आए हैं। यमराज कहते हैं कि आपने एक दिन एक ब्रह्मास्त्र को अपने द्वार से भूखा भेज दिया था जिसका पाप आपको लगा है। इसलिए नरक के द्वार आपके लिए खुल चुके हैं। राजा यमराज से माफी मांगते हैं और इस पाप का प्रायश्चित करने के लिए समय मांगते हैं। यमराज राजा को 1 साल का समय देता है। जिसके बाद राजा अपने गुरुओं से मिलता है और 1000 ब्राह्मणों को भोजन कराता है। इससे राजा के सभी पाप धूल जाते हैं और वो स्वर्ग में स्थान पाता है।

दूसरी कथा

राक्षस नरकासुर ने अपने प्रकोप से पृथ्वी पर हाहाकार मचा दिया। वो ब्रह्माणी और देवताओं पर अत्याचार करने लगा।उसने अपनी शक्ति का गलत प्रयोग कर 16 हजार स्त्रियों को बंदी बना लिया था। बिगड़े हालात देख सभी देवता गढ़ सहायता के लिए श्री कृष्ण के पास पहुंचे। कृष्ण ने नरकासुर का वध का किया और सभी 16000 स्त्रियों को मुक्ति दिलाई। कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की मदद से नरकासुर का वध किया क्योंकि नरकासुर को वरदान था कि उसका अंत किसी स्त्री के हाथों ही होगा। फिर क्या श्री कृष्ण ने सत्यभामा की मदद से राक्षस का वध किया।