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Datta Purnima: त्रिदेवों की कृपा पाने के लिए कल का दिन बेहद खास, बस इस तरह से करें पूजा

Datta Purnima: इस पूर्णिमा पर जिन दत्तात्रेय की पूजा-अर्चना की जाती है वो कोई और नहीं बल्कि त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश के अवतार माने जाते हैं। ऐसे में आज के दिन की गई पूजा से तीनों देव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश सभी की कृपा पा सकते हैं। तीन सिर और छह भुजाओं वाले भगवान दत्तात्रेय का जन्म ऋषि अत्रि और उनकी पत्नी, देवी अनसूया से हुआ था।

नई दिल्ली। कल यानी 18 दिसंबर को दत्त पूर्णिमा मनाई जाएगी। दत्त पूर्णिमा को भगवान दत्तात्रेय पूर्णिमा या दत्ता पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है जो कि मार्गशीर्ष माहीने की पूर्णिमा तिथि पर मनाई जाती है। इस पूर्णिमा पर जिन दत्तात्रेय की पूजा-अर्चना की जाती है वो कोई और नहीं बल्कि त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश के अवतार माने जाते हैं। ऐसे में आज के दिन की गई पूजा से तीनों देव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश सभी की कृपा पा सकते हैं। तीन सिर और छह भुजाओं वाले भगवान दत्तात्रेय का जन्म ऋषि अत्रि और उनकी पत्नी, देवी अनसूया से हुआ था। तो चलिए अब आपको बताते हैं कि किस तरह से आपको दत्त पूर्णिमा पर पूजा करनी है जिससे आपको इन देवों की कृपा मिल सके…

Datta Purnima

इस तरह से करें पूजा 

  • सबसे पहले सुबह जल्दी उठकर सन्ना करें
  • अब इसके बाद अब आपको स्वच्छ वस्त्र धारण करने हैं।
  • इब जिस स्थान पर भगवान दत्तात्रेय की पूजा की जानी है उस स्थान पर चौकी बिछाएं और गंगाजल छिड़कर कर शुद्ध करें।
  • इसके बाद आपको भगवान दत्तात्रेय कि एक तस्वीर को वहां स्थापित करना है।
  • तस्वीर स्थापित करने के बाद भगवान दत्तात्रेय को फूल, माला अर्पित करनी चाहिए।
  • इस सब को करने के बाद आप भगवान दत्तात्रेय को विधिविधान से धूप और दीप दिखाएं।
  • आखिर में आरती करें और प्रसाद को सभी में वितरित करें।

datt purnima

भगवान दत्तात्रेय की कथा

कथा के मुताबिक, जब महर्षि अत्रि मुनि की पत्नी अनसूया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा लेने ने के लिए त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु, महेश पृथ्वी लोक पहुंचते हैं तो वो मां अनसूया से भोजन के लिए इच्छा प्रकट करते हैं। जिसके बाद जब मां भोजन लाती हैं तो त्रिदेव माता से शर्त रखते हैं कि वो उन्हें निर्वस्त्र होकर भोजन कराएं। ऐसे में माता पहले तो थोड़ा संशय में पड़ जाती है और बाद में अपनी दिव्य दृष्टि से उन्हें पता चलता है कि वे ऋषि कोई और नहीं बल्कि स्वयं ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं। जब माता अनसूया को ये पता चलता है तो वो अत्रिमुनि के कमंडल से जल निकालकर तीनों साधुओं पर छिड़क देती है। ऐसा करते ही ऋषि छह माह के शिशु बन जाते हैं इसके बाद माता अनसूया तीनों को भोजन कराती है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश त्रिदेवों के शिशु बनने के बाद तीनों देवियां (पार्वती, सरस्वती और लक्ष्मी) पृथ्वी लोक में पहुंचती हैं और माता अनसूया से क्षमा याचना करती हैं। तीनों देव भी अपनी गलती को स्वीकारते हैं और माता की कोख से जन्म लेने का आग्रह करते हैं। बाद में यहीं त्रिदेव माता अनसूया की कोख से दत्तात्रेय के रूप में जन्म लेते हैं और तभी से ही माता अनसूया की पुत्रदायिनी के रूप में पूजा की जाती है।