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Rajya Sabha: CEC की नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर केंद्र ने राज्यसभा में पेश किया बजट, कर दी ऐसी मांग, तिलमिलाया विपक्ष

Rajya Sabha: इसके बाद समिति द्वारा सुझाए गए नाम को अनुमोदित करने के मकसद से राष्ट्रपति को भेजा जाए। इसके बाद राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदित किए जाने के बाद चुनाव आयुक्ति की प्रक्रिया संपन्न करने की प्रक्रिया निर्धारित की गई थी, लेकिन अब सत्तापक्ष द्वारा संसद में एक विधेय पेश किया गया है, जिसमें मांग की गई है कि चुनाव आयुक्ति की नियुक्ति करने वाली समिति में चीफ जस्टिस का नाम शामिल ना किया जाए,जिसे लेकर कांग्रेस और बीजेपी के बीच जुबानी जंग तेज हो चुकी है।

नई दिल्ली। पिछले कुछ दिनों से हिंदुस्तान की राजनीति में मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर सवाल उठ रहे हैं। सवाल इस बात को लेकर कि क्या नरेंद्र मोदी की हुकूमत भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त को अपने हाथों की कठपुतली बनाना चाहती है? क्या भारत के चुनाव आयुक्त को अपने हाथों की कठपुतली बनाने के मकसद से नरेंद्र मोदी की हुकूमत सरेआम नियमों की धज्जियां उड़ाने पर आमादा हो चुकी है? हिंदुस्तान की गलियां इन दिनों इन सवालों से गुंजयमान हो रही हैं। खैर, इन सवालों का आगामी दिनों में क्या जवाब निकलकर सामने आता है। इस पर सभी की निगाहें टिकी रहेंगी, लेकिन उससे पहले आपको बता दें कि आज संसद के मानसून सत्र के दौरान मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर राज्यसभा में विधेयक पेश किया गया। जिसका कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों ने विरोध किया। आइए, आगे आपको इसके विरोध के पीछे की वजह बताते हैं?

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दरअसल, बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रक्रिया के संदर्भ में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि चुनाव आयुक्त की नियुक्ति करने वाली समिति में मुख्य न्यायाधीश, प्रधानमंत्री और लोकसभा में विपक्ष का नेता शामिल होंगे। इसके बाद समिति द्वारा प्रस्तावित नाम अनुमोदन के लिए राष्ट्रपति को भेजा जाएगा। राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदित किए जाने के बाद चुनाव आयुक्त की प्रक्रिया संपन्न होगी, लेकिन अब सत्तापक्ष द्वारा संसद में एक विधेयक पेश किया गया है, जिसमें मांग की गई है कि चुनाव आयुक्ति की नियुक्ति करने वाली समिति में चीफ जस्टिस का नाम शामिल ना किया जाए, जिसे लेकर कांग्रेस और बीजेपी के बीच जुबानी जंग तेज हो चुकी है।

supreme court

कांग्रेस इसे संविधान के खिलाफ बता रही है कि सरकार मुख्य चुनाव आयुक्त को अपने हाथों की कुठपुतली बनाने चाहती है। सरकार कोर्ट के फैसले को ही बदलने की कोशिश कर रही है। बता दें कि गत मार्च माह में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट कर दिया था कि सीईसी की नियुक्ति समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और चीफ जस्टिस शामिल होंगे, लेकिन केंद्र सीजेआई के शामिल होने पर आपत्ति जता रहा है।

वहीं, अब केंद्र के इस कदम पर सीएम केजरीवाल का भी बयान सामने आया है, जिसमें उन्होंने कहा कि,’प्रधान मंत्री जी द्वारा प्रस्तावित चुनाव आयुक्तों की चयन कमेटी में दो बीजेपी के सदस्य होंगे और एक कांग्रेस का। ज़ाहिर है कि जो चुनाव आयुक्त चुने जायेंगे, वो बीजेपी के वफ़ादार होंगे।’ बता दें कि बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट ने भी दिल्ली का असली बॉस केजरीवाल सरकार को बताया था और अधिकारियों के तबादले और नियुक्ति के संबंधित सभी फैसले लेने का अधिकार केजरीवाल सरकार को दिया था, लेकिन केंद्र सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में दिल्ली लोक सेवा बिल लेकर आ गई। हालांकि, विपक्ष ने इसे रोकने की पूरी कोशिश की, लेकिन यह लोकसभा के बाद राज्यसभा से पारित हो गया। राज्यसभा में इस बिल के विरोध में 131, तो विरोध में 102 मत पड़े थे। बहरहाल, अब माना जा रहा है कि चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में सत्तापक्ष में विधेयक पेश किया है। अब आगामी दिनों में इस विधेयक को लेकर सदन का नजारा कैसा रहता है? इस पर सभी की निगाहें टिकी रहेंगी।