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ट्रेन में बैठने के पैसे नहीं थे, पैदल चलने की हिम्मत नहीं फिर ऐसे मिली मदद तो प्लेन से रांची पहुंचे मजदूर

कोरोना महामारी के इस दौर में जो लोग अपने घर वालों से दूर फंसे हुए हैं वो घर की तरफ वापस लौट रहे हैं। कुछ लोग हवाई जहाज में सफर करके, कुछ ट्रेनों, बसों, ट्रकों, तो कुछ पैदल ही अपने घरों की तरफ तपती धूप में निकल पड़े हैं।

रांची। कोरोना महामारी के इस दौर में जो लोग अपने घर वालों से दूर फंसे हुए हैं वो घर की तरफ वापस लौट रहे हैं। कुछ लोग हवाई जहाज में सफर करके, कुछ ट्रेनों, बसों, ट्रकों, तो कुछ पैदल ही अपने घरों की तरफ तपती धूप में निकल पड़े हैं। इस दौरान कई तरह की कहानियां सामने आ रही हैं। लॉकडाउन लगने के बाद से मुंबई में फंसे झारखंड के 180 मजदूरों के आज दो सपने सच हुए। एक सपना वर्षों पुराना था और दूसरा दो महीने पुराना।

delhi migrant workers

लॉकडाउन लगने के बाद से यह मजदूर वापस झारखंड आने के लिए कई प्रयास कर रहे थे। ट्रेन में बैठने के लिए पैसों की जुगाड़ नहीं हो पा रही थी और बच्चों के साथ इतना लंबा सफर पैदल करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे, तभी नेशनल लॉ स्कूल, बंगलुरु के पूर्ववर्ती छात्रों ने इन्हें हवाई जहाज में बैठाकर रांची पहुंचाया। हवाई जहाज में बैठने का सपना तो यह सब देखते थे, लेकिन इसके पूरे होने की उम्मीद किसी को नहीं थी। सपना पूरा हुआ भी उस वक्त, जब इन्हें सहारे की जरूरत थी। रांची में उतरते ही सबने धरती मां को प्रणाम किया और कहा- अब कमाने बाहर नहीं जाएंगे।

अब अपनी धरती पर आ गया हूं, खुश हूं

चतरा के रहने वाले मो. मुर्शिद अंसारी बताते हैं कि वो लेडीज शूट की कटिंग का काम किया करते थे। लॉकडाउन में सब बंद हो गया तो समस्याएं शुरू हो गई। खाना-पीना के साथ रहने की भी परेशानी शुरू हो गई। फ्लाइट में तो मैंने जीवन में पहली बार सफर किया। अब अपनी धरती पर आ गया हूं, खुश हूं। वापस नहीं जाऊंगा। यहीं पर कुछ काम करूंगा।

गांव में ही रहेंगे और यहीं पर कुछ करेंगे

चक्रधरपुर निवासी सरगल व देवेंद्र हेंब्रम मुंबई में बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन में मजदूरी किया करते थे। लॉकडाउन में समस्या हुई पर घर आने का रास्ता नहीं दिख रहा था। ऐसे में हवाई यात्रा से झारखंड आना आश्चर्य से कम नहीं। हमने पहली बार फ्लाइट से यात्रा की। अब वापस नहीं जाएंगे, गांव में ही रहेंगे और यहीं पर कुछ करेंगे।

पहली बार फ्लाइट से सफर किया

हजारीबाग निवासी विनोद दांगी कपड़ा मिल में काम करते थे। लॉकडाउन में काम बंद हो गया और घर से निकलना भी। विनोद ने बताया कि तनख्वाह तक नहीं मिला। सेठ ने पैसे नहीं दिए। बहुत दिक्कत से रह रहा था मुंबई में। खाने को भी नहीं मिल रहा था। पहली बार फ्लाइट से सफर किया, बहुत अच्छा लगा। अब मैं वापस मुंबई नही जाऊंगा।

बस यह डर था कि कहीं मुझे भी कोरोना संक्रमण ना हो जाए

हजारीबाग के ही रहने वाले जावेद ने बताया कि मुझे वहां रहने और खाने में ज्यादा परेशानी तो नहीं हुई। बस यह डर हमेशा सताता रहता था कि कहीं मुझे भी कोरोना संक्रमण ना हो जाए। अभी मैं होम क्वारैंटाइन में हूं। रेस्ट करूंगा। इसके बाद ही सोचूंगा कि वापस जाना है या नहीं।

एक टाइम खाता था और दाे वक्त भूखा रहता था

गोड्‌डा निवासी रिजवान ने बताया कि मैं वेल्डिंग का काम करता था। लॉकडाउन में बहुत दिक्कत हुई वहां। बिल्कुल फंस गया था। एक टाइम खाता था और दाे वक्त भूखा रहता था। जब तक पैसे थे, सब चलता रहा। इसके बाद तो मांग कर खाने की नौबत आ गई। मैंने कभी नहीं सोचा था कि फ्लाइट से सफर करूंगा और लॉकडाउन में भी अपने घर आ सकूंगा। अब मैं यहीं पर काम करूंगा।