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100 साल पुराने राजद्रोह कानून पर कांग्रेस सरकारों की चुप्पी, अब सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर मोदी सरकार को बदनाम करने की साजिश

राजद्रोह कानून को भलीभांति समझने के लिए आपको चलना होगा हमारे साथ उस दौर में जब देश में अंग्रेजों का शासन था। उस वक्त ब्रिटिश सरकार को यह बिल्कुल भी गवारा नहीं था कि कोई उनकी कार्यशैलियों की मुखालफत करे। लिहाजा ब्रितानी  हुकूमत ने भारतीयों के उभरते विरोधी स्वर को कुचलने के लिए राजद्रोह , यानी की आईपीसी की धारा 124 A कानून लेकर आई थी।

नई दिल्ली। अगर आपके जेहन में सुप्रीम कोर्ट से संदर्भित गतिविधियों से अवगत होने की आतुरता रहती है, तो वर्तमान में आपको कोर्ट में विचाराधीन राजद्रोह कानून के मसले के बारे में तो पता ही होगा कि कैसे इसे लेकर बहस का क्रम जारी है। वैसे उपरोक्त कानून को लेकर शुरू से ही विवादों की बयार बहती दिखी है, लेकिन हाल ही में कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल की याचिका ने राजद्रोह कानून को लेकर नए सिरे से बहस की स्थिति पैदा कर दी है। फिलहाल आज कोर्ट ने राजद्रोह कानून पर रोक लगा दी है। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि जो लोग उपरोक्त कानून के तहत सलाखों के पीछे हैं, वे जमानत के लिए अर्जी दाखिल कर सकते हैं। इसे लेकर आगे की  सुनवाई जुलाई में तय की गई है। अब ऐसी स्थिति में उपरोक्त कानून को लेकर कोर्ट का क्या रुख अख्तियार करता है। यह तो फिलहाल आने वाला वक्त ही बताएगा। लेकिन उससे पहले कुछ लोगों द्वारा इस कानून के निष्प्रभावी होने के फैसले को केंद्र सरकार की पराजय के रूप में पेश करने की कोशिश की जा रही है। कुछ लोगों द्वारा यह साबित करने की कोशिश की जा रही है कि उपरोक्त राजद्रोह कानून के निरस्त होने में केंद्र सरकार की पराजय निहित है व इसके प्रभावी रहने में केंद्र की विजयी निहित है। जिसे लेकर अब एक ट्विट सामने आया है, जिसमें स्थिति को बखूबी स्पष्ट करने की कोशिश की गई है। आइए, जरा इसके बारे में हम आपको विस्तार से बताते हैं और इसके बाद हम आपको राजद्रोह कानून के बारे में भी बताएंगे।

पहले देखिए ये ट्वीट ..! 

तो इस ट्वीट में मोदी सरकार और राजद्रोह कानून के संदर्भ में कहा गया है कि, ‘भारतीय मीडिया का एक वर्ग एसजी वोम्बटकेरे बनाम यूओआई के मामले में सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश के बारे में जनता को गुमराह करने की कोशिश कर रहा है, इसे असंतुष्टों की जीत और सरकार के लिए नुकसान के रूप में पेश कर रहा है, जब यह बिल्कुल विपरीत है – पीएम द्वारा लिए गए स्टैंड का समर्थन और समर्थन @नरेंद्र मोदी -यहाँ है क्यों।

इसके बाद उन्होंने दूसरे ट्वीट में कहा कि, ‘अंत में, इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि नेहरू-छद्म उदारवादियों के लिए सबसे बड़े डेमोक्रेट-जिन्होंने 1951 में केवल राजद्रोह के खिलाफ एक व्याख्यान दिया, लेकिन कई बार इसका दुरुपयोग किया, यह नियति के अपने बच्चे पीएम पर छोड़ दिया गया था। @नरेंद्र मोदी 75 साल बाद देशद्रोह कानून पर SC का रुख करने के लिए!

तो इस तरह आप उपरोक्त ट्वीट में देख सकते हैं कि कैसे यह बताने की पूरी कोशिश की गई है कि जिस तरह से कुछ लोगों के द्वारा यह दिखाने की कोशिश की जा रही है कि राजद्रोह कानून के निरस्त होने में केंद्र की मोदी सरकार की पराजय निहित है। अपितु सत्य इसके विपरीत है। उक्त ट्विट में यह बताने की कोशिश की गई है कि मोदी सरकार के कार्यकाल में उपरोक्त कानून के संदर्भ में कोर्ट का रूख किया गया है। बहरहाल, फिलहाल  तो कोर्ट की तरफ से कानून को निरस्त कर दिया गया है। अब आगमी जुलाई माह में उपरोक्त मसले पर सुनवाई तय की गई है। ऐसे कोर्ट का क्या रुख रहता है। यह तो फिलहाल आने वाला वक्त ही बताएगा। लेकिन उपरोक्त परिस्थितियों को भलीभांति समझने हेतु आप यह भी जान लीजिए कि राजद्रोह कानून आखिर क्या है और क्यों कोर्ट से खत्म करने की  ताकीद की गई है। चलिए, अब आगे आपको बताते हैं राजद्रोह कानून का इतिहास।

राजद्रोह कानून का इतिहास  

राजद्रोह कानून को भलीभांति समझने के लिए आपको चलना होगा हमारे साथ उस दौर में जब देश में अंग्रेजों का शासन था। उस वक्त ब्रिटिश सरकार को यह बिल्कुल भी गवारा नहीं था कि कोई उनकी कार्यशैलियों की मुखालफत करे। लिहाजा ब्रितानी  हुकूमत ने भारतीयों के उभरते विरोधी स्वर को कुचलने के लिए राजद्रोह , यानी की आईपीसी की धारा 124 A कानून लेकर आई थी, जिसके तहत अगर कोई व्यक्ति ब्रिटिश सरकार का शैलियों का विरोध करता है, तो उसे सलाखों के पीछे भिजवाने का प्रावधान है। अगर कोई भी सरकार का विरोध करें, तो उसे इस कानून के तहत जेल भेजने का प्रावधान है। बता दें कि आजादी के उपरांत भी यह कानून सक्रिय बना रहा, लेकिन ऐसे कई मामले प्रकाश में आए हैं, जिसमें इस कानून का बेजा इस्तेमाल देखा गया है, जिस पर अब अंकुश लगाने की दिशा में कोर्ट का रूख किया गया है। लेकिन मीडिया व समाज के एक वर्ग द्वारा उपरोक्त कानून को लेकर यह दिखाए जाने की कोशिश की जा रही है कि इसके निष्प्रभावी होने से केंद्र की मोदी सरकार की पराजित निहित है। दूसरे शब्दों में कहें तो मोदी सरकार को यह बिल्कुल भी पसंद नहीं है कि उनकी कार्यशैलियों की आलोचना हो, जिसके दष्टिगत उपरोक्त ट्विट काफी प्रांसगिक नजर आ रही है। अब ऐसी स्थिति में आपका इस पूरे मसले पर क्या कुछ कहना है। आप हमें कमेंट कर बताना बिल्कुल भी मत भूलिएगा।