नई दिल्ली। महाराष्ट्र में एक पत्रिका खूब लोकप्रिय है, पत्रिका का नाम है पांचजन्य, इस पत्रिका को हिंदूवादी विचारधारा से प्रेरित बताया जाता है। इसी पत्रिका ने आपातकाल की बरसी के मौके पर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की तुलना जर्मनी के विश्वविख्यात तानाशाह हिटलर से की है। इसके कवर पेज पर हिटलर और इंदिरा गांधी की तस्वीरों को चस्पा किया गया है। इसके साथ ही इसपर टाइटल के रूप में हिटलर गांधी शब्द लिखे गए हैं। इसके साथ ही इसमें एक पेज पर ये भी लिखा गया है कि हिटलर के जघन्य अपराधों को नकारने या भुलाने पर यूरोप में तमाम जगहों पर क़ानूनी रूप से बैन लगा हुआ है। यही यूरोप के अस्तित्व की रक्षा का सवाल है। कुछ ऐसी ही स्थिति भारत में इंदिरा गांधी के द्वारा जो आपातकाल लगाया गया था उसकी भी है। इंदिरा द्वारा लगाए गए आपातकाल को भूलना हमारे देश के लोकतंत्र के लिए खतरा है। आइए उस काली रात की कहानी को याद करते हैं जिसकी शुरुआत 25 जून 1975 को हुई..
दो तानाशाह , एक जैसी इबारत।
क्या यूरोप नाजीवाद और फासीवाद का सच भुला सकता है?
भारत में इंदिरा गांधी के लगाए आपातकाल को भुलाना लोकतंत्र के लिए खतरनाक हो सकता है।
आइए याद करें 25 जून 1975 की काली रात से शुरू वह दास्तान।
पढ़िए पाञ्चजन्य का नवीन अंक।#NaziIndira#HitlerGandhi pic.twitter.com/iGmiyV8AAs
— Panchjanya (@epanchjanya) June 24, 2023
इस मैग्जीन में खास तौर पर जयप्रकाश नारायण को आपातकाल के दौर में एक संघर्षवादी नेता के तौर पर दर्शाया गया है। इसमें लोकनायक जयप्रकाश नारायण की एक तस्वीर को छापा गया है जिसमें उनके हाथों में हथकड़ी बंधी हुई है। इसके साथ ही इसमें टाइटल के रूप में लिखा गया है, “वह भयावह कहानी”, इसके साथ ही इसमें आगे ये भी लिखा गया है कि यदि यूरोप नाजीवाद और फासीवाद के सच को विस्मृत कर देगा तो वहां फिर से वही सब होने से बचना संभव नहीं रह जाएगा। कुछ ऐसी ही कहानी भारत की भी है, यदि हम इंदिरा के आपातकाल के दौर को विस्मृत कर देंगे तो हमारे लिए भी लोकतंत्र को बचाए रखना बेहद मुश्किल होगा।” इसके साथ ही इस मैग्जीन में आगे ये भी लिखा गया है कि आपातकाल की लोमहर्षक कहानी लाखों लोगों को जेल में बंद करके, लोकतंत्र का, कानून का, संविधान का, मर्यादा का, हर तरह की संस्था का, न्यायपालिका का गला घोटकर स्वयं को सत्ता में बनाए रखने की तानाशाही सनक की कहानी के अलावा कुछ और नहीं है। ये कहानी हमें भूलनी नहीं चाहिए।”
आपातकाल भारत में 1975 से 1977 तक चले एक कठिन समय था, जिसे इंदिरा गांधी की सरकार ने लागू किया था। इस काल में संविधानिक मुद्दों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की पाबंदियों के खिलाफ आवाज उठाने वाले लोगों पर दबाव बनाया गया था। जयप्रकाश नारायण ने आपातकाल के दौरान एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने आपातकाल के खिलाफ साहसिक रूप से आवाज उठाई और इसके विरोध में लोगों को जुटाने का प्रयास किया। वे एक महान समाजसेवी और जननायक के रूप में भी मान्यता प्राप्त कर चुके थे, और आपातकाल के समय भी उन्होंने लोगों के हितों की रक्षा के लिए लगातार संघर्ष किया जिसके चलते वो इंदिरा की नजरों में शूल की तरह बन गए थे।