newsroompost
  • youtube
  • facebook
  • twitter

‘मंदिर मुक्त करो’ अभियान पर भागवत का बड़ा बयान: “मंदिरों का संचालन हिंदू भक्तों के हाथ में हो, दान-दक्षिणा पर सरकार का हक नहीं”

इसके पीछे की वजह बताते हुए उन्होंने कहा कि मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्ति दिलाने की आवश्यकता के पीछे की वजह साझा करते हुए कहा कि मंदिरों में श्रद्धालुओं द्वारा चढ़ाए जाने वाले दान-दक्षिणा का उपयोग सरकार द्वारा गैर-हिंदुओं के हित के लिए किया जाता है,

नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत हर समसामयिक मसलों पर अपने विचार व्यक्त करने के लिए प्रख्यात रहते हैं। उनके द्वारा दिए गए राय का कुछ लोग विरोध करते दिखते हैं तो कुछ समर्थन भी। इसी क्रम में उन्होंने हिंदू मंदिरों की संचालन प्रक्रिया पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करते हुए इसके सुधार की दिशा में अपने कुछ सुझाव सुझाएं हैं। उन्होंने हिंदू-मंदिरों के संचालन प्रक्रिया में बदलाव की जरूरत को महसूस करते हुए सरकार से इस दिशा में कदम बढ़ाने का निवेदन किया है। संघ प्रमुख ने कहा कि हिंदू मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्ति दिलाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि दक्षिण भारत के मंदिरों की तर्ज पर देश के शेष भूभागों के मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्ति दिलाने की दिशा में रूपरेखा तैयार करनी होगी। इसके पीछे की वजह बताते हुए उन्होंने कहा कि मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्ति दिलाने की आवश्यकता के पीछे की वजह साझा करते हुए कहा कि मंदिरों में श्रद्धालुओं द्वारा चढ़ाए जाने वाले दान-दक्षिणा का उपयोग सरकार द्वारा गैर-हिंदुओं के हित के लिए किया जाता है, जिनकी हिंदू धर्म में कोई आस्था नहीं है। उन्होंने कहा कि निसंदेह यह चकित कर देने वाला है कि मंदिरों में चढ़ाए जाने वाले दान-दक्षिणा का उपयोग हिंदुओं के हित में न करके गैर-हिंदुओं के हित में किया जाता है। अतएव, इस शैली पर विराम लगाने की दिशा में काम करना होगा। इसके अलावा उन्होंने इससे संदर्भित कई विषयों पर अपनी राय व्यक्त की है।

MOHAN BHAGWAT

सुप्रीम कोर्ट का भी आया था फैसला  

मोहन भागत ने कहा कि इससे पूर्व इस विषय पर कोर्ट ने अपने एक निर्देश में कहा था कि मंदिर का मालिक ईश्वर है और प्रबंधक पुजारी हैं। यद्दपि, मंदिरों पर कुछ समय के लिए सरकारी नियंत्रण बरकरार रहेगा, लेकिन अंत में मंदिरों के संचालन का दायित्व का भार हिंदू समाज पर ही होगा। वहीं, मोहन भागवत ने अपने वक्तव्यों में कहा कि वर्तमान में उपयोग में लाई जाने वाली मंदिर आचार-संहिता के उपबंध बिना किसी रायशुमारी के तैयार किए गए हैं, जो कि अब अप्रासंगिक हो रहे हैं। लिहाजा अभी सारे नियमों विद्वजनों के सुझावों की संवेदनशीलता के दृष्टिगत तैयार किया जाना अनिवार्य है, तभी यह प्रासंगिक रहेंगे।मोहन भागवत ने इस बात पर बल देते हुए कहा कि मंदिरों को संचालित करने का अधिकार श्रद्धालुओं को प्रदान किया जाए और उसमें चढ़ाए जाने वाले दान-दक्षिणा देवी-देवताओं के उपयोग व मंदिरों के जीर्णोद्धार में किया जाए। उन्होंने कहा कि यह पहल मंदिर संचालन प्रक्रिया को सरल व सुगम बनाएगी।

mohan bhagwat

सर्वविदित है कि मोहन भागवत ऐसे प्रथम व्यक्ति नहीं हैं, जिन्होंने मंदिर संचालन की प्रक्रिया में परिवर्तन की आवश्यकता को महसूस किया है, अपितु उनसे पूर्व  आधायात्मिक गुरु जग्गी वासुदेव भी मंदिरों के संचालन का सामार्थ्य श्रद्धालुओं को हस्तांतरित करने की आवश्यकता पर बल दे चुके हैं। यद्दपि, यहां गौर करने वाली बात यह है कि कई मंदिर हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती (एचआर एंड सीई) अधिनियम द्वारा शासित हैं, और इसके अलावा राज्यों के पास भी मंदिरों को संचालित करने हेतु भिन्न अधिनियम हैं। उन्होंने यह भी कहा था कि एक अधिनियम के अनुरूप संचालित होने के बावजूद भी मंदिर में कई प्रकार का अनियमितता पाई जाती है, जिसके दृष्टिगत  इस पर परिवर्तन को धरातल पर उतारना अपिहार्य है।