नई दिल्ली। वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद के मसले पर दो मुस्लिम संगठन आमने-सामने आ गए हैं। इनमें से एक ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड AIMPLB और दूसरा जमीयत उलमा-ए-हिंद JUH है। एआईएमपीएलबी ने इस मामले में वकीलों की कमेटी बनाकर सुप्रीम कोर्ट में केस लड़ने का एलान किया है। जबकि, जमीयत ने इसके खिलाफ आवाज उठाई है। दोनों मुस्लिम संगठनों की अलग राय से इस मामले में मुस्लिम पक्ष के बीच बंटवारे के आसार पैदा हो गए हैं। पर्सनल लॉ बोर्ड ने बुधवार को बयान जारी कर कहा था कि मस्जिदों के अपमान को मुसलमान कभी गवारा नहीं कर सकते। उसने कहा था कि सांप्रदायिक ताकतें अराजकता पर उतारू हैं और अदालतें भी पीड़ितों को निराश कर रही हैं।
मस्जिदों के अपमान को मुसलमान कदापि गवारा नहीं कर सकते, साम्प्रदायिक शक्तियां अराजकता पर उतारू हैं और अदालतें भी पीड़ितों को निराश कर रही हैं : ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड pic.twitter.com/mQGrdvozoE
— All India Muslim Personal Law Board (@AIMPLB_Official) May 18, 2022
इससे पहले पर्सनल लॉ बोर्ड ने मंगलवार को भी बयान जारी किया था। उसने ज्ञानवापी के मसले पर कहा था कि जल्दी ही वकीलों की कमेटी बनाई जाएगी। बोर्ड का कहना था कि वकीलों की कमेटी के जरिए वो इस केस में दखल देगा। इससे पहले बोर्ड ने अयोध्या में राममंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद में भी सुप्रीम कोर्ट तक केस लड़ा था। बोर्ड का अब ये भी कहना है कि वो किसी भी सूरत में एक और मस्जिद को हाथ से नहीं जाने देना चाहता। बोर्ड के इसी फैसले के खिलाफ जमीयत उलमा-ए-हिंद ने अपनी राय रखी है।
#ज्ञानवापी मस्जिद मामले में #जमीयत की अपील
(1) #ज्ञानवापी मस्जिद जैसे #मुद्दे को #सड़क पर न लाया जाए, सार्वजनिक #प्रदर्शनों से बचा जाए। (2) #मस्जिद कमेटी मुकदमा लड़ रही है। अन्य संगठनों से अपील है कि वे इसमें #सीधे हस्तक्षेप न करें। #अप्रत्यक्ष रूप से कमेटी की मदद की जाए। pic.twitter.com/eiXv3DMMNA— Jamiat Ulama-i-Hind (@JamiatUlama_in) May 18, 2022
जमीयत के प्रमुख मौलाना मदमूद मदनी हैं। संगठन की तरफ से ज्ञानवापी मस्जिद मसले पर बयान जारी कर कहा गया है कि ज्ञानवापी मस्जिद जैसे मुद्दे को सड़क पर न लाया जाए और सार्वजनिक प्रदर्शनों से बचा जाए। बयान में ये भी कहा गया है कि मस्जिद कमेटी केस लड़ रही है और अन्य संगठनों से जमीयत अपील करती है कि वे इसमें सीधे हस्तक्षेप न करें। जमीयत ने सुझाव दिया है कि अप्रत्यक्ष तौर पर मस्जिद कमेटी की मदद की जानी चाहिए। इसके अलावा अपने बयान मे जमीयत ने ये भी कहा है कि उलमा, वक्ताओं और गणमान्य लोगों और टीवी पर बहस करने वालों से वो अपील करती है कि इनसे परहेज करें। संगठन ने कहा है कि मामला कोर्ट में है। इसलिए डिबेट और भड़काऊ बहस और सोशल मीडिया पर भाषणबाजी किसी भी तरह देश और मुसलमानों के हित में नहीं है।