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Supreme Court on CAA : सीएए के अमल पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, 9 अप्रैल को होगी अगली सुनवाई

Supreme Court on CAA : सीएए के खिलाफ 237 याचिकाएं दायर हुई हैं। अदालत ने सीएए के खिलाफ याचिकाओं पर जवाब देने के लिए केंद्र सरकार को 8 अप्रैल तक का समय दिया है।

नई दिल्ली। नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध में डाली गई याचिकाओं पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल सीएए के अमल पर किसी भी तरह की रोक लगाने से इनकार कर दिया है। अदालत ने सीएए के खिलाफ याचिकाओं पर जवाब देने के लिए केंद्र सरकार को 8 अप्रैल तक का समय दिया है। इसके साथ मामले की अगली सुनवाई के लिए अदालत ने 9 अप्रैल की तारीख सुनिश्चित की है। सीएए के खिलाफ 237 याचिकाएं दायर हुई हैं। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ इन याचिकाओं पर सुनवाई की।

नागरिकता संशोधन अधिनियम मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केन्द्र की ओर से पेश हुए सॉल‍िस‍िटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सीएए नागरिकता लेने का नहीं बल्कि देने का कानून है। उन्होंने इस मामले में दायर याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा। इस पर याचिकाकर्ताओं की तरफ से इंदिरा जयसिंह ने दलील दी क‍ि इस कानून पर तत्काल रोक लगाई जाए। सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद केन्‍द्र सरकार को राहत देते हुए सीएए नोटिफिकेशन पर फिलहाल रोक लगाने से इनकार कर द‍िया है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए 8 अप्रैल तक अपना जवाब दाखिल करने को कहा है। इसके साथ मामले की अगली सुनवाई के लिए अदालत ने 9 अप्रैल की तारीख सुनिश्चित की है।

गौरतलब है कि केंद्रीय गृहमंत्रालय द्वारा 11 मार्च को नागरिकता संशोधन कानून के नियमों को लागू करने की अधिसूचना जारी की थी। इस कानून के तहत 31 दिसंबर 2014 से पहले पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से भारत आने वाले हिंदू, सिख, ईसाई, पारसी, जैन और बौद्ध धर्म के लोगों को भारत की नागरिकता दी जा सकेगी। मुस्लिम वर्ग के शरणार्थियों को इससे बाहर रखा गया है। मुस्लिमों को कानून से बाहर रखने के फैसले का ही विरोध हो रहा है। इस संबंध में केंद्र सरकार का तर्क है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान इस्लामिक देश हैं और यहां पर गैर-मुस्लिम को धर्म के आधार पर सताया जाता है, प्रताड़ित किया जाता है, इसी कारण गैर-मुस्लिम यहां से भागकर भारत आए हैं, इसलिए गैर-मुस्लिमों को ही सीएए में शामिल किया गया है। मुस्लिम शरणार्थियों को पूर्व के कानून के तहत ही नागरिकता प्रदान की जाएगी।