नई दिल्ली। नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध में डाली गई याचिकाओं पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल सीएए के अमल पर किसी भी तरह की रोक लगाने से इनकार कर दिया है। अदालत ने सीएए के खिलाफ याचिकाओं पर जवाब देने के लिए केंद्र सरकार को 8 अप्रैल तक का समय दिया है। इसके साथ मामले की अगली सुनवाई के लिए अदालत ने 9 अप्रैल की तारीख सुनिश्चित की है। सीएए के खिलाफ 237 याचिकाएं दायर हुई हैं। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ इन याचिकाओं पर सुनवाई की।
Supreme Court issues notice to Centre on the pleas seeking stay on the Citizenship Amendment Act (CAA), 2019 and Citizen Amendment Rules, 2024.
Supreme Court asks the Centre to file its response by April 8 and posts the matter for hearing on April 9. pic.twitter.com/tC7UJ7AbJs
— ANI (@ANI) March 19, 2024
नागरिकता संशोधन अधिनियम मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केन्द्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सीएए नागरिकता लेने का नहीं बल्कि देने का कानून है। उन्होंने इस मामले में दायर याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा। इस पर याचिकाकर्ताओं की तरफ से इंदिरा जयसिंह ने दलील दी कि इस कानून पर तत्काल रोक लगाई जाए। सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद केन्द्र सरकार को राहत देते हुए सीएए नोटिफिकेशन पर फिलहाल रोक लगाने से इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए 8 अप्रैल तक अपना जवाब दाखिल करने को कहा है। इसके साथ मामले की अगली सुनवाई के लिए अदालत ने 9 अप्रैल की तारीख सुनिश्चित की है।
VIDEO | Here’s what petitioner and advocate Ashwini Upadhyay said on Supreme Court taking up petitions challenging the constitutional validity of the Citizenship (Amendment) Act (CAA), 2019.
“There are a total of 237 petitions related to the CAA. Of these, 236 PILs are against… pic.twitter.com/zC4p4dYuh9
— Press Trust of India (@PTI_News) March 19, 2024
गौरतलब है कि केंद्रीय गृहमंत्रालय द्वारा 11 मार्च को नागरिकता संशोधन कानून के नियमों को लागू करने की अधिसूचना जारी की थी। इस कानून के तहत 31 दिसंबर 2014 से पहले पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से भारत आने वाले हिंदू, सिख, ईसाई, पारसी, जैन और बौद्ध धर्म के लोगों को भारत की नागरिकता दी जा सकेगी। मुस्लिम वर्ग के शरणार्थियों को इससे बाहर रखा गया है। मुस्लिमों को कानून से बाहर रखने के फैसले का ही विरोध हो रहा है। इस संबंध में केंद्र सरकार का तर्क है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान इस्लामिक देश हैं और यहां पर गैर-मुस्लिम को धर्म के आधार पर सताया जाता है, प्रताड़ित किया जाता है, इसी कारण गैर-मुस्लिम यहां से भागकर भारत आए हैं, इसलिए गैर-मुस्लिमों को ही सीएए में शामिल किया गया है। मुस्लिम शरणार्थियों को पूर्व के कानून के तहत ही नागरिकता प्रदान की जाएगी।