इस्लामाबाद। पाकिस्तान में कट्टरपंथी इस्लामी संगठन वैसे ही सरकार को कुछ नहीं समझते थे। इमरान खान की सरकार के दौर में इन संगठनों ने पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट को भी ठेंगे पर रख दिया है। एक कट्टरपंथी संगठन ने रहीम यार खान इलाके के भोंग में मंदिर ढहाने वालों का पक्ष लिया है। जबकि, पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने इस घटना को विदेश में पाक की छवि खराब करने वाला बताया था। पाकिस्तान के 22 धार्मिक और राजनीतिक दलों से मिलकर कट्टरपंथी संगठन ‘मिल्ली यकजेहती काउंसिल’ बनी है। इस काउंसिल ने पाकिस्तान के डॉन अखबार से कहा कि सिंध प्रांत के हैदराबाद में एक मंदिर के सामने रहने वाले हिंदू परिवारों ने वहां गाय की कुर्बानी की मंजूरी न देने की अर्जी प्रशासन को दी थी। काउंसिल ने कहा कि अल्पसंख्यकों को अगर संविधान के तहत अधिकार मिले हैं, तो उन्हें भी बहुसंख्यक होने का हक हासिल है।
काउंसिल ने कहा कि बहुसंख्यकों को अधिकार न देना भी गलत है। जब अखबार ने ये पूछा कि अगर इजरायल और भारत में बहुसंख्यक उनके जैसा ही तर्क देकर मुसलमानों पर अत्याचार करें, तो संगठन के अध्यक्ष कहने लगे कि रहीम यार खान में मंदिर पर हमले की उन्हें जानकारी नहीं है। फिर वह कहने लगे कि शरिया कानून के तहत अल्पसंख्यकों के हक सुरक्षित हैं।
बता दें कि पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर पर हमले के मामले में प्रशासन को कटघरे में खड़ा करते हुए दोषियों को तुरंत गिरफ्तार करने के आदेश दिए थे। चीफ जस्टिस गुलजार अहमद ने कहा था कि इस वारदात से देश की छवि खराब हुई है। रहीमयार खान के भोंग में भीड़ ने मंदिर को तहस-नहस करने के बाद उसमें आग लगा दी थी। इस मंदिर के पास हिंदुओं के करीब 70 घर हैं। सुप्रीम कोर्ट की बेंच के दूसरे जज काजी अमीन ने किसी की गिरफ्तारी न होने पर नाराजगी जताई थी और 13 अगस्त को दोबारा सुनवाई से पहले आरोपियों की गिरफ्तारी के आदेश पुलिस और पंजाब प्रांत की सरकार को दिए थे।