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किसान आंदोलन के ठेकेदारों को लगी मिर्ची, ‘बेरोजगार’ योगेंद्र यादव और ‘जिद्दी’ टिकैत की नेतागिरी पर लगा ताला

Farm laws repeal: पहली प्रतिक्रिया देते हुए टिकैत ने ना कोई खुशी जताई ना इस कदम को सराहा। बल्कि सरकार को कोसने में कोई कमी नहीं की। उन्होंने कहा कि वो मोदी सरकार पर भरोसा नहीं कर सकते और जब तक यह संसद में निरस्त नहीं हो जाता, वो इसपर विश्वास नहीं कर सकते। “

गुरु पर्व के पावन मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज सुबह देश के नाम संबोधन किया और किसानों की खुशहाली के लिए लाये गये तीनों विवादित कृषि कानूनों को वापस लेना का ऐलान कर दिया। हालांकि प्रधानमंत्री ने माना कि इस विधेयक से किसानों का दिल और विश्वास जीतने में सरकार की ही कोई ना कोई कमी रह गई लेकिन साथ ही उन्होंने माफी भी मांगी और किसानों से गुहार भी लगाई कि वे अपने घरों और खेतों की ओर लौंटे और एक नई शुरुआत करें। हालांकि इस फैसले का सबने स्वागत किया लेकिन आलोचकों और विपक्षी पार्टियों के हाथों मानों आरोप-प्रत्यारोप का बड़ा पिटारा हाथ लग गया हो। किसी ने इसको सरकार का नया पैंतरा बताया तो किसी ने चुनावी हथकंडा या दांव क्योंकि अगले साल 5 राज्यों में चुनाव होने वाले हैं। कृषि कानून को लेकर किसानों का गुस्सा और प्रतिरोध जायज है लेकिन अब जब ‘काले विधेयकों’ की वापसी हो गई है तो भी किसानों की अगुआई कर रहे कुछ नेताओं को इसमें छल और कपट दिख रहा है।

PM MODI

पहली प्रतिक्रिया देते हुए टिकैत ने ना कोई खुशी जताई ना इस कदम को सराहा। बल्कि सरकार को कोसने में कोई कमी नहीं की। उन्होंने कहा कि वो मोदी सरकार पर भरोसा नहीं कर सकते और जब तक यह संसद में निरस्त नहीं हो जाता, वो इसपर विश्वास नहीं कर सकते। “किसान अपनी जगह टिके रहेंगे, सड़क अभी खाली नहीं होगी,” टिकैत के इस बयान से उनकी बौखलाहट साफ झलकती दिखी।

वहीं योगेंद्र यादव भी पीछे नहीं रहे। उन्होंने भी कहा कि संघर्ष जारी रहेगा और तब तक रहेगा जब तक सरकार का अहंकार नहीं जायेगा। कुल मिलाकर किसान आंदोलन के इन कथित ठेकेदारों के पांवो तले जमीन खिसक गई है। पीएम मोदी के एक ऐलान से उनकी बसी-बसाई दुकान और राजनीति उजड़ गई है।

Yogendra Yadav

योगेंद्र यादव की बेरोजगारी और टिकैत की ‘दुकानदारी’ पर खतरा

योगेंद्र यादव की राजनीतिक आकांक्षाएं किसी से छिपी नहीं हैं, AAP से बाहर होने के बाद उन्होंने अपनी स्वराज पार्टी बनाई और किसान आंदोलन के मुख्य सूत्रधार बनकर उभरे। हरियाणा में उन्होंने कई नेताओं का घेराव किया और कड़े सवाल किये। कई बार धीमे पड़ते आंदोलन में उन्होंने जान फूंकी और अपने तर्क से किसानों की समस्या को पूरे देश के सामने रखने में सफल हुए। लेकिन यह भी सच है कि संयुक्त किसान मोर्चा ने उन्हें 1 महीने के लिए निलंबित कर दिया था, जिससे उनके आपसी मतभेद की कलई खुल गई। हालांकि उन्हें लखीमपुर खीरी में भाजपा कार्यकर्ता के मरने पर शोक जताने पर सज़ा दी गई लेकिन क्या किसी के निधन पर मानवीय संवेदना जताना भी कोई पाप है? कई बार किसानों के बीच खालिस्तानियों के घुसपैठ की खबर आई, विदेशों से फंडिग कर खालिस्तानी आग को फिर से भड़काने की कोशिश है। इसका सीधा खतरा राष्ट्र सुरक्षा पर था लेकिन इसके बावजूद सरकार ने बार-बार अपील कर आंदोलन खत्म करने की गुहार लगाई।

Yogendra Yadav

राकेश टिकैत, भारतीय किसान यूनियन के प्रमुख, आंदोलन के सबसे प्रखर नेता के तौर पर उभरे। कई मंचों से सरकार को उन्होंने ललकारा और काले कानून की खामियों और इससे होने वाले किसानों के शोषण को गिनाया। 26 जनवरी को जब किसानों ने राजधानी में तांडव मचाया और कई हिंसक घटनाओं को अंजाम दिया। फिर भी सरकार ने बात-चीत का रास्ता खुला रखा और किसानों के हित को सुरक्षित रखने का हर संभव आश्वासन दिया। लेकिन टिकैत की नेतागिरी प्रदर्शन स्थलों से लेकर TV चैनलों तक ऐसी चमकी, कि उन्हें भावी नेता के तौर पर देखा जाने लगा।

कुल मिलाकर कृषि और किसानों के जीवन में समृद्धि लाने के लिए सुधार या कृषि रिर्फाम आज इस आंदोलन की बलि चढ़ गये। प्रधानमंत्री ने बार-बार मंच से इस बात को दोहराया है कि किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिए वो प्रतिबद्ध है और जब तक इसके लिए बिग-टिकट रिफार्म नहीं लागू होंगे, तब तक देश के ग्रामीण तबके में बड़ा बदलाव नहीं आयेगा।

Rakesh Tikait

सरकार से बातचीत कर इस दिशा में सकारात्मक भूमिका निभाने की बजाये ये नेता अपने जिद्द पर अड़े रहे। इसीलिये ये कहना गलत नहीं होगा कि ये ठेकदार किसान आंदोलन की फसल काटकर यूपी और पंजाब चुनावो में अब अपनी नेतागिरी चमकाने की जुगत में लगे थे।
इस एक फैसले ने उनकी राजनीति पर सिरे से लगाम दिया है।

MSP की मांग: किसानों के हक की लड़ाई या चुनावी दांव?

योगेंद्र यादव और टिकैत दोनों ने MSP यानी फसल पर न्यूनतम दाम लगाने की मांग की है। टिकैत बोल चुके हैं कि आगामी चुनवों में वो भाजपा के खिलाफ आवाज बुलंद करने से पीछे नहीं हटेंगे। वहीं योगेंद्र यादव ने कहा कि संघर्ष जारी रहेगा जबतक सरकार का घमंड बरकरार रहेगा। तो सवाल यह उठता है कि क्या MSP की आड़ में ये किसान नेता कोई मोर्चा खोलना चाहते हैं, क्या इनकी कोई राजनीतिक मंशा है?