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Uttar Pradesh: दलहनी फसलों पर डबल इंजन सरकार का जोर, बढ़ाई एमएसपी

Uttar Pradesh: जमाना एकल खेती का है। लोगों का सारा जोर धान, गेहूं एवं गन्ने पर ही होता। एक्सपर्ट्स की मानें तो एकल खेती या एकल निवेश में हर कदम जोखिम होता है। इसलिए कृषि में विविधीकरण की बात की जाती है। सरकार भी लगातार कृषि विविधीकरण पर जोर दे रही है। दलहनी फसलों की इसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।

लखनऊ। शाकाहारी लोगों के लिए प्रोटीन का सबसे बड़ा स्रोत होने के साथ ही दलहनी फसलें अरहर, मूंग, उड़द, चना एवं मटर आदि भूमि के लिए भी संजीवनी हैं। मूंग जैसी फसल को तो दो-तीन तुड़ाई के बाद खेत में पलट देने से यह हरी खाद का काम करती है। खाद्य सुरक्षा के साथ इनके अन्य लाभों के मद्देनजर ही डबल इंजन (मोदी-योगी) की सरकार इनकी खेती पर खासा जोर दे रही हैं। किसान इनकी खेती के प्रति प्रोत्साहित हों, इसके लिए केंद्र सरकार ने चंद रोज पहले जिस एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) की घोषणा की उनमें भी इन फसलों पर ध्यान दिया गया है। मसलन पिछले साल के मुकाबले मूंग के समर्थन मूल्य में प्रति क्विंटल सर्वाधिक वृद्धि की गई है। 2022-2023 में इसका समर्थन मूल्य 7755 रुपये प्रति क्विंटल था जो 2023-24 में बढाकर 8558 रुपये कर दिया गया। इसी तरह अरहर का मूल्य 6600 से 7000 रुपये और उड़द का 6600 से 6950 रुपये कर दिया गया।

बहुपयोगी होती हैं दलहनी फसलें

दलहनी फसलें बहुपयोगी होती हैं। यह दालों के अलावा हरे चारे तथा हरी खाद के लिए भी उगाई जाती हैं। अरहर तो बाड़, छाजन, जलावन, खांची, दवरी, ढाका, एवं खरहर के रूप में झाड़ू के भी काम आता है।

प्राकृतिक तरीके से नाइट्रोजन स्थिरीकरण में मददगार

दलहन की सभी फसलों की जड़ों में गांठे पाई जाती हैं। इनमें राइजोबियम जीवाणु उपस्थित रहते हैं जो वायुमण्डल से नाइट्रोजन लेकर भूमि को उपलब्ध कराते हैं। भूमि में जीवांश पदार्थ तथा नत्रजन की मात्रा में वृद्धि होती है। इससे दलहनी फसलों के अलावा अगली फसल को भी लाभ होता है।

तीनों फसली सीजन में संभव है मूंग एवं उड़द की खेती

मूंग एवं उड़द की खेती तो तीनों फसली सीजन रबी, खरीफ एवं जायद में संभव है। यह कम अवधि में होने वाली और सहफसल के लिए भी उपयुक्त है। कम खाद एवं पानी की जरूरत की वजह से इनकी खेती में श्रम एवं संसाधन की बचत होने से संबंधित किसान को प्रोटीन से भरपूर एक फसल मिलने के साथ अतरिक्त फसल के रूप में अतिरिक्त लाभ भी मिलता है। दलहनी फसलों की जड़ों में ग्लोमेलिन प्रोटीन पाया जाता है जो मिट्टी के कणों को जोड़े रखता है। इससे मिट्टी का क्षरण नहीं होता, जल संचयन क्षमता बढ़ती है और मिट्टी का पीएच मान संतुलित रहता है।

रोजमर्रा के उपयोग के कारण बाजार कोई समस्या नहीं

किसी न किसी रूप में रुचि के अनुसार दाल लगभग हर घर में हर रोज बनती है। इसलिए बाजार में हरदम इनकी मांग बनी रहती है। उत्तर प्रदेश आबादी के लिहाज से देश का सबसे बड़ा सूबा है। सेहत के प्रति बढ़ती जागरुकता एवं बेहतर होती अर्थव्यवस्था के नाते लोगों की बढ़ी आय, आने वाले समय में इसकी मांग बढ़ाने की वजह बनेगी।

कम हो जाता है एकल खेती का जोखिम

जमाना एकल खेती का है। लोगों का सारा जोर धान, गेहूं एवं गन्ने पर ही होता। एक्सपर्ट्स की मानें तो एकल खेती या एकल निवेश में हर कदम जोखिम होता है। इसलिए कृषि में विविधीकरण की बात की जाती है। सरकार भी लगातार कृषि विविधीकरण पर जोर दे रही है। दलहनी फसलों की इसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।

फसल चक्र के लिए भी मुफीद

लगातार अनाज प्राप्त करने के लिए एक ही तरह की फसलों की बुआई करते रहने से मिट्टी की उपजाऊ क्षमता में कमी आती है, उनमें लगने वाले रोग और कीटों का प्रभाव अधिक रहता है। पर, दलहनी फसलों की बुआई करने से खेतों की बुआई में परिवर्तन आता है और फसल चक्र लागू होता है। लगातार फसल आच्छादन के कारण खर-पतवार का प्रकोप भी अपेक्षाकृत कम होता है।

दालों में प्रोटीन संग फाइबर, विटामिन, एंटीऑक्सीडेंट और खनिज भी

दाल में प्रोटीन के अलावा फाइबर, विटामिन, एंटीऑक्सीडेंट और खनिज भी उचित मात्रा में पाए जाते हैं। दाल पाचन क्रिया संतुलित रखती है। साथ ही शरीर की आंतरिक कमजोरी दूर करती है। अमूमन डॉक्टर भी रोगी को दाल का पानी पीने, मूंग की दाल की खिचड़ी खाने की सलाह देते हैं।

सीएम का निर्देश अगले चार साल में 35.79 लाख मीट्रिक टन करें उत्पादन

केंद्र सरकार की मंशा के अनुरूप योगी सरकार ने दलहन का उत्पादन बढ़ाकर प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने की मुकम्मल कार्ययोजना तैयार की है। दरअसल इस योजना पर काम तो योगी सरकार के पहले कार्यकाल में ही शुरू हो गया था। नतीजतन 2016-17 से 2020-21 के दौरान दलहन का उत्पादन 23.94 मीट्रिक टन से बढ़कर 25.34 लाख मीट्रिक टन हो गया। इस दौरान प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 9.5 कुंतल से बढ़कर 10.65 कुंतल हो गई। योगी सरकार-2.0 ने इसके लिए पांच साल का जो लक्ष्य रखा है उसके अनुसार दलहन का रकबा बढ़ाकर 28.84 लाख हेक्टेयर करने का है। प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 12.41 कुंतल और उत्पादन 35.79 मीट्रिक टन करने का है।

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कैसे हासिल होगा ये लक्ष्य

उत्पादन में गुणवत्ता बीज की महत्ता को देखते हुए दलहन की विभिन्न फसलों की नई प्रजातियों के प्रमाणित (सर्टिफाइड) एवं आधारीय (फाउंडेशन) बीज के वितरण लक्ष्य में कई गुना की वृद्धि की गई। ये बीज किसानों को अनुदानित दर पर दिए जाते हैं। इसके साथ ही दलहनी फसलों का क्षेत्रफल बढ़ाने के लिए अंतःफसली एवं जायद की फसलों में दलहनी (उड़द, मूंग) फसलों को प्रोत्साहन। असमतल भूमि पर स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली का प्रयोग करते हुये उत्पादन में वृद्धि, फरो एंड रिज मेथड से खेती कर उत्पादन में वृद्धि और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद की गारंटी जैसे कदम लक्ष्य हासिल करने में मददगार बनेंगे।