लखनऊ। करीब दो साल का वक्त बचा है। फिर 2024 के लोकसभा चुनाव की दुंदुभि बजने वाली है। केंद्र की सत्ता पर 2014 से बीजेपी का कब्जा है। इस कब्जे की मुख्य वजह पीएम नरेंद्र मोदी हैं। मोदी के नाम पर बीजेपी हर जगह चुनाव लड़ती है। ज्यादातर जगह वो सफल रही है। हालांकि, कुछ राज्यों में अब भी क्षेत्रीय दलों का प्रभुत्व है और वो चुनावों में बीजेपी को आगे नहीं बढ़ने देतीं। अब बीजेपी ने 2024 का चुनाव और खासकर यूपी को फिर एक बार अपने कब्जे में करने के लिए नया समीकरण बैठाने की तैयारी की है। ये समीकरण पसमांदा मुसलमानों को लेकर है। तो पहले आपको बताते हैं कि पसमांदा मुसलमान आखिर कौन हैं।
पसमांदा मुसलमान वो हैं, जो पहले पिछड़ी और दलित जाति के थे। बाद में उन्होंने इस्लाम अपनाया। इनमें इदरीसी, नाई, मिरासी, मुकेरी, बारी, घोसी, राइनी, अंसारी, मोमिन, मलिक, मंसूरी जैसी 44 जातियां हैं। भारत में करीब 22 करोड़ मुसलमान हैं। पसमांदा मुसलमान इनमें से सबसे ज्यादा करीब 85 फीसदी हैं। यूपी में इस साल हुए विधानसभा चुनाव में 34 मुसलमान विधायक चुने गए हैं। इनमें से 30 पसमांदा समाज से हैं। यूपी और बिहार में पसमांदा मुसलमानों की बड़ी तादाद है। यूपी के पूर्वांचल और इससे सटे बिहार के इलाकों में पसमांदा मुस्लिम बसते हैं। वहीं, पश्चिमी यूपी, हरियाणा के कुछ हिस्सों और राजस्थान में भी पसमांदा मुसलमान पाए जाते हैं। यही वजह है कि बीते दिनों हैदराबाद में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान खुद पीएम नरेंद्र मोदी ने पसमांदा मुसलमानों को बीजेपी के साथ जोड़ने के लिए पहल करने का निर्देश दिया है।
यूपी की योगी सरकार में पसमांदा मुस्लिम समाज से दानिश आजाद अंसारी मंत्री हैं। वो युवा नेता हैं और पूर्वांचल के कई इलाकों में उनको पसंद करने वाले लोग हैं। इसी तरह बिहार सरकार में शाहनवाज हुसैन भी इसी समुदाय के हैं। बीजेपी के सूत्रों के मुताबिक यूपी के चुनाव में करीब 10 फीसदी पसमांदा मुस्लिमों के वोट उसे मिले। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में बीजेपी और भी पसमांदा मुसलमानों को संगठन और बड़े ओहदों पर ला सकती है। आखिर पसमांदा मुसलमानों पर बीजेपी इतना जोर क्यों दे रही है? इस सवाल का जवाब लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार नवलकांत सिन्हा देते हैं। नवलकांत के मुताबिक अयोध्या में राम मंदिर बन गया। कश्मीर से जुड़े संविधान के अनुच्छेद 370 का निपटारा हो चुका। यानी बीजेपी के एजेंडे के दो बड़े वादे उसने पूरे कर दिए। अब हिंदुत्व की जगह उसकी नजर राजनीति के अहम बिंदु यानी जातियों पर पड़ी है। नवलकांत के मुताबिक ओबीसी और दलितों में बीजेपी ने अच्छी पैठ बनाई है। वहीं, तीन तलाक को बैन करके उसने मुस्लिम महिलाओं में से भी ज्यादातर के दिल में जगह बनाने में कामयाबी हासिल की है। कई जगह मुस्लिम बहुल इलाकों में बीजेपी के उम्मीदवारों की जीत इस ओर इशारा करती है। ऐसे में अब बहुमत वाले पसमांदा यानी मुसलमानों में आर्थिक, सामाजिक और शिक्षा के तौर पर पिछड़े लोगों को जोड़कर वो सियासत का नया रूप तामीर करना चाहती है। नवलकांत सिन्हा का मानना है कि पसमांदा मुसलमानों के जरिए बीजेपी तमाम राज्यों में अपनी स्थिति और मजबूत करने जा रही है। इसका नतीजा 2024 में दिखने का उनका दावा भी है।