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What Is Places Of Worship Act: जानिए क्या है प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, क्यों ज्ञानवापी और मथुरा की मस्जिद मसले पर इसका हवाला दे रहा मुस्लिम पक्ष?

हिंदुओं ने काशी की ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा की श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर बनी मस्जिदों का मुद्दा भी उछाला था। ऐसे में पीवी नरसिंह राव की सरकार ने संसद से प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट पास कराया था। इस एक्ट के दायरे में राम जन्मभूमि को छोड़कर बाकी सभी धार्मिक स्थलों को लाया गया था।

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल ने बड़ा फैसला सुनाते हुए ज्ञानवापी मस्जिद के टाइटल सूट को चैलेंज करने वाली मुस्लिम पक्ष की 5 याचिकाएं आज खारिज कर दीं। मुस्लिम पक्ष ने प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के हवाले से कोर्ट में दलील दी थी कि ज्ञानवापी मामले को अदालत में नहीं लाया जा सकता। जस्टिस अग्रवाल ने इस दलील को मानने से साफ इनकार कर दिया। आप में से तमाम लोगों को शायद पता नहीं होगा कि कांग्रेस की केंद्र में जब सरकार थी, तो प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट संसद से पास कराया गया था। हम आपको बताने जा रहे हैं कि आखिर ये प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट आखिर है क्या?

जब राम जन्मभूमि आंदोलन काफी तेज हो गया था, तो उसका हल निकालने के लिए केंद्र सरकार लगातार कोशिश कर रही थी। इसी बीच, हिंदुओं ने काशी की ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा की श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर बनी मस्जिदों का मुद्दा भी उछाला था। ऐसे में पीवी नरसिंह राव की सरकार ने संसद से प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट पास कराया था। इस एक्ट के दायरे में राम जन्मभूमि को छोड़कर बाकी सभी धार्मिक स्थलों को लाया गया था। प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को 18 सितंबर 1991 को संसद से पारित कराने के बाद लागू किया गया था। इस एक्ट के तहत किसी भी पूजा स्थल का रूप बदलने और उसका धार्मिक चरित्र बदलना संभव नहीं है। प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 में कहा गया है कि 15 अगस्त 1947 को जो भी पूजा स्थल थे, वे वैसे ही रहेंगे। एक्ट के मुताबिक भविष्य में कभी भी किसी अन्य के पूजा स्थल को बदला नहीं जा सकेगा।

साल 2014 में जबसे केंद्र में बीजेपी की सरकार आई, तभी से प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को रद्द करने की मांग ने जोर पकड़ा है। संसद में जब ये कानून पास कराया जा रहा था, उस वक्त भी बीजेपी सांसदों ने इसका विरोध किया था। प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को असंवैधानिक बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दी गई है। इस पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है। अब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इसे ज्ञानवापी के मामले में लागू होने से साफ इनकार कर दिया। इससे मथुरा की शाही मस्जिद के मसले पर भी असर पड़ सकता है।