नई दिल्ली। कोरोना के चलते दुनियाभर के बड़े से बड़े देश जहां बड़े बड़े अस्पताल और उच्च कोटि की हेल्थकेयर सुविधाएं हैं वो अपने नागरिकों की जान बचाने में मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। इस महामारी का बच्चे, जवान और बुजुर्ग सबके ऊपर गहरा असर पड़ रहा है। बुजुर्गों पर ये वायरस ज्यादा घातक सिद्ध हो रहा है तो वहीं कोविड-19 से पीड़ित बच्चों में से ज्यादातर में हल्के लक्षण ही दिखाई देते हैं और जरूरत पड़ने पर उपचार की स्थिति में एक से दो सप्ताह के भीतर ही पूर्ण रूप से उनका ठीक हो जाना भी संभव है।
यह बात विभिन्न अध्ययनों की समीक्षा किए जाने के बाद सामने आई है जो बच्चों में इस महामारी के लक्षणों और परिणामों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी साझा करती है। इस बारे में ‘जर्नल ऑफ अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन’ ने 18 अध्ययनों का आकलन किया, जिसमें चीन और सिंगापुर से 1065 लोगों को शामिल किया गया। इनमें से ज्यादातर मरीज कोरोना वायरस की चपेट में आए बच्चे थे।
बता दें इन अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार सार्स-कोव-2 से पीड़ित बच्चों में बुखार, सूखी खांसी और थकान जैसे लक्षण नजर आए थे या उनमें कोरोनावायरस संक्रमण के लक्षण ही नहीं थे। इटली स्थित पाविया विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ता भी इस अध्ययन समीक्षा में शामिल रहे। अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि केवल एक बच्चे को निमोनिया था जिसकी हालत सदमे तथा किडनी के काम न करने के कारण और जटिल हो गई। हालांकि, गहन देखभाल आईसीयू में उसका उपचार सफल हुआ। कोरोना को लेकर कई तरह के शोध हो रहे हैं। शोधकर्ताओं में इससे जुड़ी अहम जानकारियां साझा करने की होड़ मची है।
वैज्ञानिकों के अध्ययन के अनुसार कोविड-19 वायरस से संक्रमित ज्यादातर बच्चे अस्पताल में भर्ती कराए गए थे और लक्षणयुक्त बच्चों को मुख्यत: सिर्फ सहायक दवाएं दी गईं तथा शून्य से नौ साल की उम्र तक के इन बच्चों में किसी की मौत नहीं हुई। ये आंकड़े बच्चों पर कोरोनावायरस के असर के बारे में बेहद अहम जानकारियां उपलब्ध कराते हैं। ये शोध और अध्ययन आने वाले वक्त में कोरोना से लड़ने के लिए डॉक्टरों की मदद कर सकते हैं।