नई दिल्ली। जब से नीतीश कुमार एनडीए से जुदा हुए हैं, तभी से सियासी गलियारों में मौजूदा लोगों के जेहन में महज यही जानने की आतुरता अपने चरम पर पहुंची हुई है कि आखिर ऐसी क्या मजबूरी हो गई थी कि नीतीश कुमार ने उस दल का साथ छोड़ दिया, जिसने उन्हें साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में महज 45 सीटें जीतने के बावजूद भी मुख्यमंत्री की कुर्सी से विभूषित किया था। आखिर जिस पार्टी ने सियासी जीवन में हर परिस्थितियों में उनका साथ दिया। आखिर नीतीश ने उसी का साथ छोड़ दिया। हालांकि, ऐसा नहीं है कि नीतीश कुमार ने एनडीए से अलहदा होने के बाद इन मसलों पर अपनी राय जाहिर नहीं की थी, बल्कि उन्होंने तो इन मुद्दों पर खुलकर अपनी बात रखी थी, लेकिन अब उन्होंने इस संदर्भ में जिस तरह का बयान मीडिया से मुखातिब होने के क्रम में दिया है, उसे अब उनके एनडीए से अलहदा होने की ठोस वजह के रूप में देखा जा रहा है, तो अब ऐसे में सवाल पैदा होता है कि आखिर अब तक जिस तरह के बयान उन्होंने मीडिया से मुखातिब होने के क्रम में दिए थे, तो वे क्या थे, आप कह सकते हैं कि वह कुछ नहीं, महज राजनीतिक औपचारिकताएं ही थीं। चलिए, अब जानते हैं कि आखिर उन्होंने क्या कुछ कहा है।
आपको बता दें कि आज मीडिया से मुखातिब होने के क्रम में नीतीश कुमार मे कहा कि उन्होंने केंद्रीय मंत्रिमंडल के गठन के दौरान जदयू के 4 सांसदों को मंत्री पद देने की मांग की थी, लेकिन अफसोस सरकार ने उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया। ध्यान रहे कि केंद्रीय मंत्रिमंडल में जदयू की ओर से सिर्फ और सिर्फ महज आरसीपी सिंह को ही मंत्रिमंडल में शामिल किया गया था।
उधर, आरसीपी सिंह के बारे में भी कहा जाता है कि केंद्र ने नीतीश की सहमति के बगैर ने उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल किया था, जिसे लेकर कई मौकों पर नीतीश और केंद्र के बीच रार भी देखने को मिली थी, लेकिन किसी भी सामान्य व्यक्ति के लिए यह अंदाजा लगा पाना मुश्किल था कि रार का स्तर इस कदर अपने चरम पर पहुंच जाएगा कि एक दिन नीतीश एनडीए को बॉय बॉय बोलकर राजद के साथ हाथ मिला लेंगे। बहरहाल, अब आगामी दिनों में बिहार की राजनीति में क्या कुछ देखने को मिलता है। इस पर सभी की निगाहें टिकी रहेंगी। तब तक तक के लिए आप देश दुनिया की तमाम बड़ी खबरों से रूबरू होने के लिए आप पढ़ते रहिए। न्यूज रूम पोस्ट.कॉम