newsroompost
  • youtube
  • facebook
  • twitter

Pollsters India Survey: अगले साल लाल किले पर वापसी के मोदी के दावे पर बहुमत का विश्वास, अविश्वास प्रस्ताव में विपक्ष हार गया परसेप्शन वॉर, पोलस्टर्स इंडिया के सर्वे “संसद से लाल किले तक” में मिले दिलचस्प संकेत

Polsters India Survey: क्षेत्रीय संदर्भ में देखें तो पीएम मोदी से उत्तर और पश्चिम क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन की पहले से ही उम्मीद थी लेकिन वह पूर्वी भारत में भी बढ़त बनाने में कामयाब रहे और उन्होंने दक्षिण में भी अच्छा समर्थन हासिल किया।

नई दिल्ली। देश की प्रतिष्ठित सर्वे एजेंसी पोलस्टर्स इंडिया के देशव्यापी सर्वे में शामिल अधिकांश उत्तरदाताओं का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 15 अगस्त, 2024 को अपना 11वां स्वतंत्रता दिवस भाषण देने के लिए लाल किले पर वापस आएंगे। मोदी की इस लोकप्रियता के लिहाज़ से इंडिया गठबंधन को अभी काफ़ी मशक़्क़त करनी होगी जबकि लोकसभा चुनावों में महज़ 8 महीने ही बाक़ी हैं। सर्वे से ऐसा लगता है कि राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक माहौल अभी भी सत्तारूढ़ भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के साथ है। विपक्ष संसद के भीतर और फिर लाल किले के स्वतंत्रता दिवस समारोह में भी परसेप्शन की लड़ाई हारता नजर आया। सर्वे के अनुसार, लाल किले पर स्वतंत्रता दिवस समारोह से दूर रहने के कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के फैसले और कांग्रेस नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला की राक्षस वाली टिप्पणी ने भी इंडिया गठबंधन की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाया है। 15 अगस्त को लाल किले के अपने भाषण में, प्रधानमंत्री ने कहा कि वह अगले लोकसभा चुनाव के बाद 2024 में लाल किले पर वापस आएंगे। उन्होंने ये संकेत देने की कोशिश की कि वह 2024 में चुनावी जीत के प्रति आश्वस्त हैं।

पीएम के इसी यकीन पर पूछे गए सवाल के जवाब में 54% उत्तरदाताओं ने माना कि पीएम वापस आएंगे जबकि 37% उत्तरदाताओं के मुताबिक चुनाव बेहद करीबी होने की उम्मीद है। हालांकि इंडिया गठबंधन के तहत विपक्षी वोटों के एकजुट होने के बाद राष्ट्रीय राजनीतिक समीकरण थोड़ा बदल जरूर गए हैं। ऐसे में भाजपा के दोबारा सत्ता में आने की संभावना इस बात पर निर्भर करती है कि वह उत्तर और पश्चिम भारत में कितना अच्छा प्रदर्शन करती है। इन दोनों ही क्षेत्रों में लोकसभा की 543 सीटों में से 258 सीटें हैं। एनडीए ने इनमें से 220 सीटें जीती थीं। इस सियासी लड़ाई में महाराष्ट्र एक प्रमुख युद्ध का मैदान बना हुआ है। हालांकि एमवीए से एनडीए में हुए दलबदल की घटनाओं ने शिवसेना के इंडिया गठबंधन में शामिल होने के असर को कम कर दिया है।

इस सर्वे में, उत्तर और पश्चिमी भारत के अधिकांश उत्तरदाताओं का मानना है कि पीएम मोदी अगले साल वापस आएंगे जबकि पूर्व और दक्षिण भारत के उत्तरदाताओं ने संकेत दिया कि ये चुनावी मैदान अभी भी सभी के लिए खुला हुआ है। ये भी एक सच्चाई है कि भाजपा के नेतृत्व वाला एनडीए पिछले चुनावों में दक्षिण में 131 में से केवल 30 सीटें जीतने में कामयाब रहा है, उनमें से अधिकांश कर्नाटक से हैं जहां कांग्रेस ने हाल के विधानसभा चुनावों में प्रभावशाली जीत दर्ज की है। एनडीए ने पूर्वी भारत की 129 सीटों में से 86 सीटों पर जीत हासिल की थी, लेकिन जेडीयू के खिसकने और पश्चिम बंगाल में बीजेपी विरोधी वोटों के एकजुट होने से संकेत मिलता है कि एनडीए को कुछ उलटफेर का सामना करना पड़ सकता है। इस सर्वे में पश्चिम और उत्तर भारत में भाजपा के पास 25% से अधिक वोट शेयर की बढ़त पाई गई है। ध्यान देने वाली बात यह है कि इन दोनों क्षेत्रों ने भाजपा को 220 सीटें दीं। यहां भाजपा की मजबूत बढ़त से संकेत मिलता है कि भाजपा अगले चुनावों में बहुमत के साथ वापस आने के लिए मजबूत स्थिति में है, जब तक कि इंडिया गठबंधन साल 2004 की तरह एक मजबूत बढ़त हासिल नहीं कर लेता है।
सर्वे में लाल किले पर स्वतंत्रता दिवस समारोह से दूर रहने के कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के फैसले को लेकर भी सवाल पूछे गए।

 

खड़गे ने पार्टी के राष्ट्रीय मुख्यालय में कांग्रेस के समारोह का नेतृत्व किया था लेकिन स्वतंत्रता दिवस के राष्ट्रीय समारोह से दूर रहने का उनका निर्णय अच्छा नहीं रहा। सर्वे के मुताबिक 55% उत्तरदाताओं ने इस कदम का समर्थन नहीं किया, जबकि 36% उत्तरदाताओं ने संकेत दिया कि यह कोई बड़ा मुद्दा नहीं था। इस मामले में कांग्रेस की मुश्किल यह भी है कि उसे पूर्वी और दक्षिणी भारत से भी बहुत अधिक समर्थन नहीं मिलता दिख रहा है, जबकि ये दो वे क्षेत्र हैं जहां कांग्रेस को अमूमन मजबूत समर्थन मिलता है। कांग्रेस इस बीच अपने ही नेताओं के सेल्फ गोल से भी जूझती नजर आ रही है। कांग्रेस के पूर्व मुख्य प्रवक्ता और कर्नाटक प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला ने अपने गृह राज्य हरियाणा के कैथल में एक सार्वजनिक बैठक में न केवल भाजपा, बल्कि उसके समर्थकों की तुलना राक्षसों से कर दी और उन्हें शाप भी दिया। भाजपा ने इस पर पूरी तरह से आक्रामक रुख अपनाया और इसे एक राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया ।

 

सुरजेवाला के इस बयान का अच्छा असर नहीं रहा। सर्वे में 62% उत्तरदाताओं ने कहा कि वे सुरजेवाला से असहमत हैं और केवल 18% उत्तरदाता सहमत दिखे। सुरजेवाला से असहमति की ये प्रवृत्ति देश के हर हिस्से में देखी गई। यहां तक कि पूर्वी और दक्षिण भारत में भी उत्तरदाताओं ने उनके बयान से खासी असहमति जताई।

पोलस्टर्स इंडिया के इस सर्वे में विपक्षी दलों द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर भी जनता की राय जानी गई। हालांकि यह स्पष्ट था कि प्रस्ताव गिर जाएगा क्योंकि सत्तारूढ़ सरकार के पास अपनी नैया पार लगाने के लिए पर्याप्त संख्याबल है। इसे कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की वापसी के रूप में देखा गया, जिन्होंने अयोग्य ठहराए जाने के बाद साल का बड़ा हिस्सा संसद के बाहर बिताया था। हमने उत्तरदाताओं से पूछा कि अविश्वास प्रस्ताव से किस गठबंधन को अधिक लाभ हुआ। 52% उत्तरदाताओं ने माना कि भाजपा को बढ़त हासिल है, जबकि 40% ने कहा कि कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन को बढ़त हासिल है। अविश्वास प्रस्ताव पर देशव्यापी सर्वे के तहत उत्तर में 59% और पश्चिम भारत में 60% उत्तरदाताओं का मानना था कि भाजपा को इस बहस से फायदा हुआ क्योंकि वह सरकार के खिलाफ दिए गए सभी तर्कों को ध्वस्त करने में सक्षम थी। कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन को दक्षिण भारत में बढ़त मिली, जहां लोकसभा की 131 सीटें हैं। यह वह क्षेत्र है जहां 2019 में भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन को केवल 26% वोट मिल सके थे, जबकि कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन को 38% वोट मिले थे।

साल 2024 में देश के पूर्वी क्षेत्र के सियासी लड़ाई की एक बड़ी जमीन बनने की उम्मीद जताई जा रही है। यहां जेडीयू और एआईटीसी जैसी पार्टियों का पुनः साथ आना इंडिया गठबंधन को मजबूत करने में मदद कर रहा है, जिससे इसे 2019 के वोटशेयर के आधार पर 3.4% की बढ़त मिल रही है। हालाँकि, इंडिया गठबंधन की अविश्वास प्रस्ताव रणनीति योजना के अनुसार नहीं चली, क्योंकि 52% उत्तरदाताओं ने कहा कि इस प्रस्ताव से भाजपा को फायदा हुआ।
ये अविश्वास प्रस्ताव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके प्रमुख प्रतिद्वंद्वी राहुल गांधी के बीच पहली सीधी प्रतिस्पर्धा के तौर पर देखा जा रहा था। राहुल गांधी का 38 मिनट का भाषण आक्रामकता से भरपूर था पर जमीन पर इसका कोई खास असर नजर नहीं आया। 52% उत्तरदाताओं ने कहा कि मोदी का भाषण राहुल गांधी ( 39%) से बेहतर था।

क्षेत्रीय संदर्भ में देखें तो पीएम मोदी से उत्तर और पश्चिम क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन की पहले से ही उम्मीद थी लेकिन वह पूर्वी भारत में भी बढ़त बनाने में कामयाब रहे और उन्होंने दक्षिण में भी अच्छा समर्थन हासिल किया। इससे पता चलता है कि क्षेत्रीय दलों का समर्थन करने वालों में भी एक वर्ग ऐसा है, जिसने प्रधानमंत्री मोदी के भाषण को राहुल गांधी द्वारा किए गए हमले से अधिक महत्व दिया है।

  • 54% लोग प्रधानमंत्री के इस दावे पर विश्वास करते हैं कि वह अगले साल लाल किले पर फिर आएंगे, जबकि 37% ना है कि चुनाव लड़ाई बेहद करीबी होने की उम्मीद है।
  • 55% लोगों को नहीं लगता कि मल्लिकार्जुन खड़गे को लाल किले पर हुए आयोजन से दूर रहना चाहिए था ।
  • सुरजेवाला का राक्षस वाला बयान पार्टी के हितों के खिलाफ गया। 62% उत्तरदाताओं ने कहा कि वे सुरजेवाला से असहमत हैं।
  • 52% का कहना है कि विपक्ष द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव से भाजपा को फायदा हुआ, जबकि केवल 40% ने कहा कि कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन का पलड़ा भारी रहा।
  • 52% उत्तरदाताओं ने कहा कि मोदी का भाषण राहुल गांधी (39%) से बेहतर था।